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________________ नव पदार्थ ११३ ३१. झूठ बोलना मृषावाद आश्रव है और जो कर्म उदय में होता है, वह मृषावाद पाप-स्थान है। जो मिथ्या बोलता है, वह जीव है तथा जो उदय में होता है, वह कर्म है। इन दोनों को भिन्न-भिन्न जानें। ३२. चोरी करना अदत्तादान आश्रव है। जो कर्म के उदय से होता है, वह अदत्तादान पाप-स्थान है। जिसके उदय से जीव चोरी करता है, उसे जीव का लक्षण जानें। ३३. मैथुन का सेवन करना मैथुन-आश्रव है। वह जीव का परिणाम है। जो कर्म उदय में होता है, वह मैथुन पाप-स्थान है। मोहनीय कर्म अजीव है। __३४. सचित्त, अचित्त और सचित्ताचित्त वस्तु पर ममत्व रखने को परिग्रह जानें। वह ममता मोहकर्म के उदय से होती है और उदय में आया हुआ वह मोहकर्म परिग्रह पाप-स्थान है। ३५. क्रोध से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक जो उदय में आते हैं, वे सब पाप-स्थान हैं। इनका उदय होने से जीव जो सावध कृत्य करता है, उन सबको जीव का लक्षण जानें। ३६. सावध कार्य जीव के व्यापार हैं। और जो उदय होते हैं, वे पापकर्म हैं। इन दोनों को एक समझने वाले अज्ञानी भ्रम में भूले हुए हैं। ३७. आश्रव कर्म आने के द्वार हैं। वे जीव के परिणाम हैं। इन द्वारों से होकर जो आते हैं, वे आठ कर्म हैं, वे पुद्गल द्रव्य हैं। ३८. अशुभ परिणाम, अशुभ लेश्या, अशुभ योग-व्यापार, अशुभ अध्यवसाय और अशुभ ध्यान ये पाप आने के द्वार हैं। ३९. शुभ परिणाम, शुभ लेश्या, शुभ निरवद्य योग-व्यापार, शुभ अध्यवसाय और शुभ ध्यान ये पुण्य आने के द्वार हैं।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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