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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ३१. झूठ बोलें ते मिरषावाद आश्व छे, उदे छे ते मिरषावाद ठांणो रे।
झूठ बोलें ते जीव उदें हुवा कर्म, यां दोयां में जूआ जूआ जांणो रे।।
३२. चोरी करें ते अदतदान आश्व छ, उदें ते अदतादांन ठांणो रे।
ते उदें आयां जीव चोरी करें छे, ते तों जीव रा लखण जांणो रे।।
३३. मइथांन सेवे ते मइथांन आश्व, ते जीव तणा परणांमो रे।
उदें हओ ते मइथांन पाप थांनक छे, मोह करम अजीव , तांमो रे।।
३४. सचित अचित मिश्र उपर, ममता राखे ते परिग्रह जांणो रे।
ते ममता , मोह कर्म रा उदा सूं, उदें में छे ते पाप ठांणो रे।।
३५. क्रोध सूं लेइ ने मिथ्यात दर्शण, उदें हूआ ते पाप रो ठांणो रे।
यांरा उदा सूं सावध कामा करें ते, जीव रा लखण जांणो रे।।
३६. सावध कामां ते जीव रा किरतब, उदें हुआ ते पाप कर्मो रे।
यां दोयां में कोइ एकज सरधे, ते भूला अग्यांनी भर्मो रे।।
३७. आश्व तो कर्म आवाना दुवार, ते तो जीव तणा परिणामो रे।
दुवार माहे आवे ते आठ कर्म छे, ते पुदगल द्रव्य छे तांमो रे।।
३८. माठा परिणाम में माठी लेस्या, वले माठा जोग व्यापारो रे।
माठा अधवसाय में माठो ध्यान, ए पाप आवाना दुवारो रे।।
३९. भला परिणाम में भली लेस्या, भला निरवद्य जोग व्यापारो रे।
भला अधवसाय में भलोइ ध्यान, ए एन आवा रा दुवारो रे।।