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भरत चरित
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१२. देवताओं ने फिर फूलों की वर्षा की और कहा- बाहुबलजी लड़ाई जीत गए। भरतजी फिर मुकर गए और कहा- पांचवीं बार लड़ाई करेंगे।
१३. बाहुबलजी ने फिर कहा- खुशी से पांचवां संग्राम करो, भाग्य में आगेकुछ भी नहीं है। आप निश्चिंत होकर मन की इच्छा पूरी करें ।
पीछे
१४. पांचवां संग्राम मुष्टि- प्रहार का स्थापित हुआ, यह लोक में प्रसिद्ध है । भरतजी ने बाहुबलजी की घात करने के लिए मुष्टि का प्रहार किया ।
१५. भरतजी के मुष्टि प्रहार से बाहुबलजी को असह्य वेदना हुई । यदि ऐसा प्रहार किसी दूसरे पुरुष पर होता तो वह खंड-खंड हो जाता ।
१६. पर बाहुबलजी कैसे मर सकते हैं? वे इसी शरीर से मुक्त होने वाले हैं। फिर भी उन्हें अत्यधिक क्रोध पैदा हुआ और सोचा मैं भरत पर प्रहार करूं ।
१७. बाहुबलजी ने भरत नरेंद्र को मारने के लिए मुष्टि उठाई। उस समय उनके परिणाम अत्यंत अप्रशस्त हो गए।
१८. दोनों ही मुक्त होने वाले हैं, पर राज्य के लिए आपस में संग्राम कर रहे हैं। पर अंत में दोनों संयम ग्रहण कर मोक्ष जाएंगे और अपनी आत्मा का काम सिद्ध करेंगे।