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भरत चरित
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४. इस प्रकार दूत को शिक्षा दी। दूत ने उसको स्वीकार कर लिया। वह बड़े साज-सामान और ठाठबाट से वहां से निकला।
५. ठाटबाट से बाहुबलजी के स्थान पर पहुंचा। वहां आकर विनयपूर्वक मधुर स्वरों में जय-विजय शब्दों से उन्हें वर्धापित किया।
६. बाहुबलजी ने दूत को मान-सम्मान देकर उसे समाचार पूछे- दूत! तुम किसके द्वारा भेजे हुए आए हो। दूत ने कहा- मैं तो भरतजी के द्वारा भेजा हुआ आया
७. बाहुबलजी ने कहा- भरतजी की बात कहो। तब दूत ने कहा- भरतजी ने मेरे साथ आपके लिए जो समाचार कहे हैं, आप उन्हें ध्यान देकर सुनें।
८. मेरे शस्त्रागार में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है। इसलिए मेरी आज्ञा स्वीकार करें। यों कहकर मुझे भेजा है। आप उनके इस वचन को स्वीकार करें, आपके लिए यही बात उपयुक्त है।
९. यह वचन सुनकर बाहुबलजी कुपित हो गए। उस समय उन्होंने ललाट पर तीन लकीरें चढ़ाते हुए मुख से कठोर वचन कहे । तू जाकर भरत को ऐसे कहना।
१०. तुम जाकर भरत को यों कहना- आपने अट्ठानबे भाइयों का राज्य छीन लिया है। आपने ऐसा अकृत्य किया है। अभी भी आपको लज्जा नहीं आती है।
११. मैं डरकर आज्ञा स्वीकार नहीं करूंगा और डरकर साधु भी नहीं बनूंगा। मैं तुम से संग्राम करूंगा। तुम भी लड़ने के लिए जल्दी तैयार हो जाओ।