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दोहा
१. श्री ऋषभ की वाणी सुन कर उनके हृदय में ज्ञान आया। काम भोग उन्हें जहर के समान लगने लगे।
२. वे हाथ जोड़कर कहने लगे, हम आपके वचन पर श्रद्धा करते हैं । आप भव जीवों को तारने वाले हैं। हमें आप सच्चे स्वजन मिले हैं।
३. हम काम - भोग से ऊब गए हैं। संसार को अस्थिर जान लिया है । राज्य, ऋद्धि और रमणियों को छोड़कर संयम भार ग्रहण करेंगे।
४. ऋषभ जिनेश्वर ने कहा- यदि तुम्हें संयम भार ग्रहण करना है तो जरा भी विलंब मत करो। जो घड़ी बीत जाती है, वह लौट कर नहीं आती ।
५. उसी समय अट्ठानवे ही भाइयों ने संजम भार ग्रहण कर लिया। राज- रमणियों को छोड़कर महान् मुनि बन गए।
ढाळ : १०
१. फिर भरत महाराज दूसरे दूत को बुलाकर कहते हैं- बाहुबल मेरे भाई हैं । तुम तत्काल उनके पास जाकर मेरा संदेश कहना ।
२. उनकी विनय-भक्ति करना फिर अत्यंत नम्रता से कहना । मैं तुम्हें जो बात कहता हूं वह सारी भाई को सुना देना। उन्हें कुशलतापूर्वक कहना ।
३. मेरे यहां चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है। चक्रवर्ती की पदवी आकर उदित हुई है। इसलिए आप भरत राजा की आज्ञा स्वीकार करें । भरत महाराज ने आपको ऐसा कहलवाया है।