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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१०
ढाळ : ९ (लय : विणजारा)
प्रतिबूझो रे, म्हें थानें दीधों राज। १. तिण राजसू काज सीझें नहीं, प्रति बूझो रे।
जिणराज सूं सीझें काज, ते राज न दीयो थांने सही।।
२. खोस्यों जाों राज, ते राज म जांणों आपरो।
इण थोथा राज रें काज, यूं ही पचें जीव बापडो।।
३. अविचल मुगत रो राज, ते लीधो न जाों केहनो।
तिहां भय दुख जाों सर्व भाज, अनोपम सुख जें जेहनों।।
४. इण थोथा राज रें काज, भाइ भाइ माहो मा लड परें।
वळे छोडे सरम ने लाज, आपस में माहो मा कट मरें।।
तन धन में परभव नावें
परिवार, लार,
इहां का त्यांतूं
इहां गरज
रहसी सरें
सही। नही।
६.
हरें सगा में सेंण, पहरें संचीयों धन हाथ बंधव त्रिया में पूत, नही पेंहरें धर्म जगनाथ
रो। रो॥
७. जब लग स्वार्थ होय, तब लग मुख जी जी
स्वार्थ सरीया जोय, मुख दीठांइ लड
करें। पडें।।
८. इंद्री विषय कषाय,
मेटो त्रिसना लाय,
अभिंतर भोभीया वस करो। सुमता रस चित्त में धरो।
९. हिरदे विमासी जोय, तन धन जोवन असासता।
तिणमें म राचो कोय, ज्यूं सुख पांमो सासता।।
१०. एहवो
तिणनें
इथर
तीन
संसार, थिर कोइ वसत दीसें नही।
धिकार, जे इणमें राच रह्या सही।