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के अनेक पर्याय प्रचलित थे । उदाहरण के लिए हम आश्रव शब्द को लें । भिक्षु वाङ्मय में आश्रव के आसरव, आसवर, आसव, आश्व आदि अनेक रूप स्वीकृत किए गए हैं । हमने भी उस मौलिकता की सुरक्षा करते हुए उन रूप पर्यायों को उसी रूप में मूल पाठ के रूप में स्वीकार किया है ।
इसी प्रकार तात्कालीन राजस्थानी में अक्षरों के साथ बिन्दुओं का भी प्रयोग बहुलता से होता था। हमने भी मूल पाठ की इस मौलिकता को यथावत् स्वीकार किया है। हो सकता है वर्तमान में ऐसा प्रचलन नहीं है पर हमने उस समय की लिपि—रूढ़ि तथा इतिहास को सुरक्षित रखने की दृष्टि से तथा मूल पाठ की सुरक्षा के लिए उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया ।
कुछ लोग राजस्थानी को एक बोलचाल की भाषा मानते हैं। पर इस भाषा के संपूर्ण वाङ्मय को देखा जाए तो लगेगा कि इसमें अभिव्यक्ति की अनुपम क्षमता है। जैनाचार्यों ने तमिल, तेलगु, कन्नड़, शूरसेनी, मराठी, गुजराती की तरह राजस्थानी भाषा में भी विपुल साहित्य लिखा है । यदि कोई विद्वान केवल तेरापंथी साहित्य का भी सम्यग् अनुशीलन करले तो उसे लगेगा कि राजस्थानी एक समृद्ध एवं समर्थ भाषा है । तेरापंथ के अनेकों आचार्यों तथा साधु-साध्वियों ने भी राजस्थानी भाषा में अपनी लेखनी चलाई है। निश्चय ही वह राजस्थानी भाषा की महत्त्वपूर्ण सेवा है।
भिक्षु वाङ्मय को हम चार भागों में बांट सकते हैं - १. तत्त्वदर्शन २. आचार दर्शन ३. औपदेशिक ४. आख्यान साहित्य |
आचार्य भिक्षु ने प्रभूत आख्यान साहित्य लिखा है । वह सारा पद्यमय है । उनके द्वारा लिखे गए आख्यानों की कुल संख्या इक्कीस है। कुछ आख्यान छोटे हैं तो कुछ बड़े । कुछ आगमाधारित हैं तो कुछ परम्परागत । उनमें तत्कालीन कला, संस्कृति, जन-जीवन आदि का सुघड़ चित्रण किया गया है । उनके द्वारा लिखित आख्यानों की समीक्षा में अनेक पुस्तकें लिखी जा सकती है । प्रस्तुत प्रसंग में भरत चरित्र के विषय में संक्षिप्त चर्चा कर रहे हैं ।
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यह आख्यान आकार में आचार्य भिक्षु रचित आख्यानों में सबसे बड़ा है । आचार्य भिक्षु ने इसका मूलाधार जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति को माना है। कथा - सूत्र को जोड़ने के लिए उन्होंने अन्य स्रोतों का तथा अपनी स्वयं की मेधा का भी उपयोग किया है। इस आख्यान में भरत के ऐश्वर्य पर जितना प्रकाश डाला गया है, वह अद्भुत है। एक चक्रवर्ती होने के नाते कुछ ऐश्वर्य उन्हें सहज प्राप्त होता है तो कुछ ऐश्वर्य वे अपने भुजबल से अर्जित करते हैं । भरत के लम्बे जीवन का साठ