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१. अठां
हिवें
पेंहली कही कथा अणुसारें
दुहा ते वारता, सुतर रें अणुसार। हूं कहू, ते सुणजों इधिकार।।
२. अठाणु भायां में भरत कहवाडीयो, म्हारों वचन कीजों परमाण।
चक्ररत्न ऊपनों म्हारें, तिणसूं मांनजों म्हारी आंण।।
अठाणु भाइ सुणे इम बोलीया, किण लेखें मांनां म्हे आंण। म्हांने राज बेंटी दीयो बापजी, म्हारा पुन तणे परमाण।।
४. तिणसूं आंण न मांनां म्हें थांहरी, थे मत करो कजीयो कूड।
थे जोरी करसों म्हां ऊपरें, तो म्हें जासां रिक्षभ हजूर।।
५. ए वचन न मांन्यों भरतजी, जब भेला होय तिणवार।
आय ऊभा रिक्षभ देव आगलें, करवा लागा , पुकार।।
६. थे राज दीयों म्हांने वांटनें, सगलां में जूओं-जूओं तास।
ते राज खोसें म्हारों भरतजी, तिणसूं आया तुम तणे पास।।
७.
आप समझावो भरत नें, ज्यूं खोसें नहीं म्हारो राज। राज तणा दुखीया थका, आप कनें आयां छां आज।।
८. जद रिक्षभ जिणेसर तेहनों, त्यांसू राग नही लवळेस।
समझता जाण सारां भणी, देवा लागा उपदेस।।