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भरत चरित
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२. जाम्बूनद के पीले सोने की उसकी धार है । उसकी भीतरी परिधि में भांतिभांति के मणिरत्न लगे हुए हैं ।
३. चंद्रकांत आदि मणिरत्नों से चतुराई से जालियां की गई हैं । जालियों को मोतियों से कुशलतापूर्वक सजाया गया है।
४. भंभा, भेरी, मृदंग आदि बारह वाद्ययंत्र एक साथ समुचित रूप से बज रहे हैं। उनकी प्रतिध्वनि हो रही है ।
५. उनके साथ छोटी-छोटी घुंघरियां भी बज रही हैं। उनकी मधुर ध्वनि अत्यंत सुहावनी लग रही है ।
६. नवोदित सूर्य के मंडल की तरह वह गोलाकार एवं तेजस्वी है।
७.
. विभिन्न प्रकार के मणिरत्नों में अनेक घंटियों से घिरा हुआ है। उनकी ध्वनि अत्यंत मधुर है।
८. स्थान-स्थान पर सभी ऋतुओं के सुगंधित फूलों की माला तथा गुलदस्ते लहरा रहे हैं ।
९. वह आकाश में निरालंब ऐसा लग रहा है जैसे कोई दूसरा सूर्य ही चमक रहा है । वह हजार देवताओं से अधिष्ठित है ।
१०. प्रधान वाद्ययंत्र बज रहे हैं। उनसे तेज तथा मंद स्वरों की श्रीकार धुन निकल रही है ।
११. वह स्वर आकाश में व्याप्त हो गया। उससे आकाश ही गूंजने लगा । भरत महाराज सुदर्शन चक्ररत्न के स्वामी हैं ।
१२. इस प्रकार का मनोहारी चक्ररत्न गुणों से पूर्ण और दोषरहित है । भरतजी अंत में उसे भी असार समझकर छोड़ देंगे तथा अविचल मोक्ष में जाएंगे।