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भरत चरित
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१३. अनेक मंत्री, महामंत्री, ईश्वर, राजाओं से परिवृत्त नरेश अत्यंत हर्ष से चलने
लगे।
१४. अपने शरीर को ऐसा सुशोभित कर लिया जैसे पूनम का नीरज चांद बादलों से निकला है । उसे देखने से ही मन आनंदित हो जाता है ।
१५. छह खंड के स्वामी भरतजी चंद्रमा के समान सौम्य हैं। उन्होंने धूप, फूल तथा फूलों की गंध माला हाथों में ली।
१६. सांसारिक कर्तव्य समझ कर चक्ररत्न का महोत्सव कर रहे हैं । इन सबको सावद्य समझ छोड़कर वे इसी भव में मुक्ति जाएंगे।