________________
दोहा १. भरतजी का स्नानागार अत्यंत मनोहारी है। उसमें अनेक जगह मोतियों की जालियां बनी हुई हैं। उसके गवाक्ष भी अत्यंत शोभाप्रद एवं अभिराम हैं।
२. विचित्र मणिरत्नों से उसका आंगन जड़ा हुआ है। वह मक्खन की भांति अति चिकना है। उसे देखने मात्र से आंखें ठरने लग जाती हैं।
३. उनका स्नान-मंडप भी अत्यंत अभिराम है। भांति-भांति के मणिरत्नों से उस पर चित्र अंकित हैं।
___४. वहां स्नान करने के लिए जो पीढ-पट्ट है वह भी विविधतापूर्ण है। भरत भूपति वहां स्नान करने के लिए बैठे।
५. भरतजी ने सुखदायक, विशिष्ट, सुगंधित, शुद्ध, पुष्पोदक से स्नान किया।
६. भरतजी ने यह स्नान मंगल, कल्याण व विघ्न-निवारण के लिए स्नान किया।
७. कुशल पुरुष ने कोमल, सुगंधित एवं सुंदर लाल वस्त्र से उनके शरीर को पोंछा।
ढाळ : ५
भरतजी इस प्रकार चक्ररत्न का महोत्सव कर रहे हैं। १. तत्काल निष्पन्न आर्द्र, सरस, सुरभित, सुगंधित गोशीर्ष चंदन से शरीर को चर्चित किया।