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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ७. ज्यांरी सोभा जग में फेली रे, ते हूआ तीर्थंकर पेंहली।
ते हूआ धर्म नां धोरी रे, ते मुगत गया कर्म तोडी।
८. वळे आठ भरतजी रा पाटो रे, ते पिण मुगत गया कर्म काटों।
ते पिण इण विध ध्याए ध्यांनों रे, उपजायों केवलग्यांनों।।
९. त्यां तो सारीया आत्म कामों रे, त्यांरा जूआ जूआ छे नामों।
आदितजस महाजस तांमो रे, अतिबल में महाबल नामों।।
१०. ततवीर्य ने कणवीर्य रे, त्यां पिण कीधी घणी धीर्ज।
दंडवीर्य में जलवीर्य नामों रे, त्यां पिण सारया आतम कामों।।
११. ए आठ पाट भरतजी रा जांणो रे, आळूइ गया निरवांणो।
भरतजी जिम ध्याया ध्यांनों रे, उपजाए केवलग्यांनों।।
१२. नवमें पाट हूवों भारी कर्मों रे, तिण जाण्यो नही जिण धर्मों।
तिण माठी मन में विचारो रे, आंगुण काढ्या महिलां मझारो॥
१३. भरतजी सूधा नव पाटो रे, सगलां रो हुवों एहीज घाटों।
सगलां दीयों राज छिटकाइ रे, एहवी अकल इण मेंहलां में आइ।
१४. पूरों राज न कीधो धापो रे, ते मेंहलां तणो परतापो।
सगला भेख ले हुआ साधो रे, इण मेंहलां तणो परसादो।
१५. रखे मोनेड करें खराबो रे, तो यांनें पराय देणा सताबो।
ए उंधी अकल हीया में आइ रे, तिण दीधा मेंहल पडाइ।
१६. ॲ तो पुनवंता रा , मेंहलो रे, जिण तिणने नही छे सेंहलों।
भरत जी पूरा पुन कीधा रे, त्यांनें तो देवतां कर दीधा।।