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दुहा
१. भरत जी मोख पधारीया, आवागमण मिटाय।
यांरो पिरवार मोख कुण कुण गया, ते सांभलजो चित्त ल्याय।।
२. रिषभदेवजी मुगते
अंगजात बेटा बेटी
गया, वळे पोतरा, ते
त्यांरो पिरवार। सुणजों विसतार।।
ढाळ : ७३
(लय : थे तो जीव दया व्रत पालो) १. धुरसू तों मोरादेवी माता रे, करें आठ कर्मी री घाता।
सारां पेंहली मुगत सिधाया रे, सासता सुख निश्चल पाया।।
२. श्री ऋषभ तणा सो पूतो रे, ज्यां दीया मुगत ना सूतो।
करणी कीधी काकडाभूतो रे, सुख पाम्यां छे अद्भूतों।।
३. जिण माता रें कूखें आया रे, तिके सोइ मुगत सिधाया।
करणी कर कर्म निठाया रे, ते फिर पाछा नही आया।।
४. ब्राह्मी में सुंदरी हुइ बॅनों रे, त्यां पांम्यों संजम में चेनों।
वरत्यों तप तेज सवायो रे, तिण बाहूबल समझायों।।
५. साल रूंख रें साल पिरवारो रे, ज्यांरो जस फेल्यो संसारों।
छोड दीयों कजीयों कारो रे, त्यांरो खेवों हुवें पारों।।
६. आंबा रूंख रे आंबा चाखें रे, तिणनें कोई दोष न दाखे।
जो लागें आंबा रे केरों रे, तो वात घणी दीसें गेरों।