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भरत चरित
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१७. श्रवण नक्षत्र के साथ चंद्र योग प्राप्त होने पर वेदनीय, आयुष्य, नाम तथा गौत्र, इन चारों कर्मों का भी क्षय कर सारे संयोगों का विनाश कर दिया।
१८. आयुष्य पूर्ण होने पर वहां कालधर्म को प्राप्त कर जन्म और मृत्यु को सर्वथा छिन्न कर अपने आत्मकार्य को सिद्ध किया।
१९. सर्व दुःखों का अंत कर भरतजी शाश्वत सिद्ध हो गए। वहां अनुपम सुखों को प्राप्त कर अपनी मनोकामना पूरी कर ली।
२०. वहां अजरामर शाश्वत सुख हैं। देवताओं के तीन काल के सुखों से भी अनंत गुण अधिक हैं। वहां सदा अविचल रहना है।