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भरत चरित
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७. इनके घर में तीन करोड़ दुधारू गोकुल हैं। एक करोड़ हल चलते हैं। चौसठ हजार अंत:पुर है। इन सबसे विरक्त होकर ये वैरागी बन गए हैं।
८. अड़तालीस कोस में इनकी सेना का पड़ाव होता है। दुश्मन उनसे दूर भागते हैं। चौदह रत्न उनकी आज्ञा मानते हैं। पर इन्होंने इनके प्रति अनुराग का त्याग कर दिया ।
९. मतवाले हाथी, हिनहिनाते घोड़े, कनडे पायक, पुत्र तथा अंतःपुर विलाप करते रहे पर इन्होंने विनीता नगरी का त्याग कर दिया ।
१०. कुटुम्ब, कबीले, स्वजन, सगे संबंधियों से इनका मन विरक्त हो गया। वे सारे मोह - विलाप करते रहे। इन्होंने संसार का त्याग कर दिया।
११. इन्होंने सारभूत, अमूल्य, अथाह और अत्यंत गुणकारी नौनिधान तथा छह खंड का अखंड राज्य एक साथ त्याग दिया।
१२. बीस हजार सोने-चांदी की खानें, अथाह मणि, माणिक, मोती रत्नों का भी किंचित् मोह नहीं किया ।
१३. ज्योति से जगमगाते बयांलीस भौमिक महलों से भी उनका चित्त विरक्त हो गया और वे जागकर उठ खड़े हुए।
१४. इंद्र के ऋद्धि विस्तार की तरह उनके भी कोई कमी नहीं थी । उस धन को धूल समझकर तत्काल त्याग दिया।
१५. योगी की जटा पर उस्तरा चलाने से वह सारी सिर से मुंह के सामने आकर गिर पड़ती है। भरतजी ने योगी की जटा की तरह सारी ऋद्धि का मन से त्याग कर दिया ।