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भरत चरित
४२१ १४. आपके स्मृतिचिह्न हमें कांटे की तरह चुभते रहेंगे। जीवनपर्यंत प्राणों तथा हृदय में दुःख हिलोरें मारता रहेगा।
१५. पपैये का जैसे मेघ आधार होता है वैसे ही आप हमारे प्रियतम प्राणाधार हैं। हमें और किसी का आधार नहीं है। अत: आप हमें निराधार न करें।
१६. इस प्रकार भरतजी के महलों में कोई रोता-पीटता है, कोई चिल्लाता है। जब भयंकर कोलाहल हुआ तो शब्दों के अर्थ भी समझ से बाहर हो गए।
१७. भरतजी ने संयम ग्रहण किया तो अनेकानेक लोग दुःखी हुए। उसका विस्तार अकथ्य है। उनके मोह कर्म उदय में आ गए।
१८. ऐसे मोह शब्दों को सुनकर कच्चे हृदय का आदमी हो तो वहां चलित हो जाए, पर भरतजी कैसे चलित हो सकते हैं? वे तो चार कर्मों का क्षय कर केवलज्ञानी हो गए।