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भरत चरित
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ढाळ : ६६
१. छह खंड के सरदार भरतजी अब मनोगत भोगों का भोग करते हुए कुशलतापूर्वक राजा की रीति का निर्वाह कर रहे हैं।
२. छह खंड का राज्य करते हुए भी उनका कार्य कैसे सिद्ध होता है इसे एकाग्र होकर सुनें।
३. एक दिन भरतजी आदर्श भवन में आकर स्नान कर श्रृंगार करते हैं।
४. वहां सिंहासन पर पूर्व दिशा के सम्मुख बैठकर अपने रूप को निहारकर हर्षित होते हैं।
५. वहां बैठे हुए उस समय उनके हाथ में मुद्रिका नहीं थी। तब शरीर को असार जानकर भरतेश्वर प्रतिबुद्ध हो गए।
६. एक अंगुली भी आभूषण के बिना कुरूप लगती है। यों विचार करते हुए वहीं उनके अशुभ कर्म दूर हो गए।