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भरत चरित
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ढाळ : ६५
यह कर्मों की विडंबना है। १. सब लोगों में यह बात प्रसिद्ध हो गई कि भरतजी ने चोर को मरवाया है। इससे कुछ धर्मद्वेषी लोगों का बल बढ़ गया।
२. एक धर्मद्वेषी अज्ञानी आदमी ने कहा- ऋषभदेवजी ने कहा है कि भरत इसी भव में मुक्ति जाएगा। लगता है उन्होंने भरत की झूठी प्रशंसा की है।
३. भरतजी को मनुष्य मरवाने में भी तिलमात्र शंका-डर नहीं है। उन्हें इसी भव में मोक्षगामी कहना प्रत्यक्ष झूठ है।
४. ये मनोज्ञ कामभोगों का सेवन करते हैं। छह खंड का राज्य करते हैं और मनुष्यों को मारने जैसा अकार्य करते हैं।
५. ऐसा अकार्य करते हुए भी यदि भरतजी मोक्ष जाएंगे तो ऋषभदेवजी ने अपने निन्नाणवें पुत्रों से राज्य क्यों छुडवाया? ।
६. राज्य करते हुए तथा मनुष्य को मरवाते हुए भी मुक्ति जाएंगे तो यह बात सर्वथा झूठी है। मैं इसे सत्य नहीं मानता।
७. यह बात चलती-चलती भरत नरेश्वर के कानों तक पहुंच गई। भगवान् को झूठा ठहराने से वे अत्यंत कुपित हुए।
८. भरतजी ने उसे बुलाकर कहा- तुमने यह बात कही या नहीं? उसने कहामैंने कही तो थी। सहज ही मेरे मुंह से यह बात निकल गई।
९. तब भरतजी ने उससे पूछा- हम मुक्ति में क्यों नहीं जाएंगे? तुमने ऋषभ जिनेंद्र को किस न्याय से झूठा कहा?।