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भरत चरित
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२४-२६. इसी प्रकार बत्तीस हजार राजाओं, सेनापति, गाथापति, बढ़ई तथा पुरोहित रत्न को, तीन सौ साठ रसोइयों, अठारह - अठारह श्रेणि- प्रश्रेणि तथा अनेक राजेश्वर, सार्थवाह आदि सभी को अत्यंत सत्कार - सम्मान देकर भरतजी ने अपने ठिकानों की ओर विदा किया।
२७. सबको विदा कर अपने महलों में आए और वहां मनोज्ञ सुखों का उपभोग करने लगे ।
२८. पर अंतरंग में उन्हें बड़ा प्रपंच, मायाजाल तथा विष - फल सरीखा जानते हैं ।
२९. इनसे स्नेह उतर जाएगा उसके बाद छोड़ने में जरा भी देर नहीं करेंगे। संयम लेकर सीधे सिद्धगति में जाएंगे।