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भरत चरित
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१४. नगरी में स्थान-स्थान पर कहना कि सब प्रकार की चूंगी, गौ आदि कर मुक्त कर दिया गया है। तोल-माप में बढ़ोतरी करो।
१५. किसी के घर कोई राजपुरुष न जाए, दंड भी न ले। पूरे नगर और देश में कुदंड तो लेना ही नहीं है, दंड भी न लें।
१६. किसी के सिर पर ऋण हो तो उसे तुरंत चुका दे। यदि किसी के घर में न हो तो राज-दरबार से ले जाए।
१७. विनीता नगरी में आज तक का कोई ऋण न रखे। यदि किसी के घर में खाने का अभाव हो तो वह भी राज-दरबार से ले जाए।
१८. विनीता नगरी में कोई धरणा मत पाड़ना । कोई लड़ाई-झगड़ा मत करना। कोई भी गलत काम न करना।
१९. घर-घर में हर्ष से महोत्सव करें। घर-घर में फूल बांधो। घर-घर में रंगबधामणा करो। घर-घर में सुरीले गीत गाओ।
२०. विनीता में घर-घर में खुशियां मनाओ। किसी भी प्रकार का तनिक भी शोक न करो। बारह वर्षों तक महामहोत्सव करते रहो।
२१. बारह वर्षों तक प्रतिदिन नगरी में सहर्ष नए-नए विशेष महोत्सव मनाओ।
२२. नगरी में स्थान-स्थान पर सबको सुना-सुनाकर यह उद्घोषणा करना। इसमें किंचित भी ढील-देरी मत करना।
२३. मैंने जितने कहे हैं वे सारे कार्य करके मेरी आज्ञा मुझे प्रत्यर्पित करना। सेवक यह सुनकर बहुत हर्षित हुआ। भरतजी की आज्ञा स्वीकार करली।