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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१०
ढाळ : ५९ (लय : चुतर विचार करेनें देखो)
भरत नरिंद ने राज बेसावें ।। १. एक हजार में आठ कलसा, सोना रा वेकें कीया श्रीकारो जी। • वळे वेकें कीया कलस रूपा रा, आठ में एक हजारों जी।
२. एक सहंस ने आठ मणी रत्न में, कलसा कीया वेकें अनूंपो जी।
एक सहंस ने आठ सोवन में रूपा में, वेकें कीया धर चूंपो जी।।
३. एक सहंस ने आठ सोवण मणी में, कलसा विक्रुव्या तांमो जी। ' एक सहंस ने आठ रूपा ने मणी में, ते पिण कलसा घणा अभिरामोजी।।
४. सोवन रूपों में मणी रत्न में, कलसा एक सहस में आठो जी।
सहंस ने आठ माटीनां विक्रुव्या, कर कर वेक्रेना थाटो जी।।
५. ए आठ हजार में चोसठ कलसा, देवता रूडी रीत सूं करीया जी।
ते खीरोदधी आदि पाणी तीर्थ ना, गंधोदक जल करनें भरीया जी।।
६. एक सहंस ने आठ भिंगार लोटा, आरीसा एक सहंस ने आठो जी।
एक सहंस ने आठ थाली में पात्री, वेकें कीया , रूडें घाटों जी।
७. एक सहंस ने आठ रत्न करंडीया, फूल चंगेरी सहंस ने आठों जी।
एक सहंस ने आठ छत्र रत्न ने चामर, देवता कीया वेक्रेनां थाटों जी।।
८. धूप कुडछा कीया सहंस ने आठ, इत्यादिक अनेक प्रकारो जी।
ते विसतार तों , जीवाभिगम में, विजें पोलीया नें इधिकारो जी।
९. ए वेने कीया ते एकठा करने, वनीता नगरी आयों ताह्यों जी।
वनीता में प्रदिखणा, करतों, अभीषेक मंडप तिहां आयो जी।।