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दुहा १. बत्तीस सहंस राजा तिण अवसरें, आया अभीषेक मंडप माहि।
अभीषेक पीढ रें प्रदिखणा करें, चढीया उत्तर पावडीया ताहि।।
२. जिहां भरत राजा तिहां आयनें, अंजली करें जोडी हाथ।
विनों कीयों सीस नमायनें, जाणे सिर धणी नाथ।।
३. जय विजय करे वधायने, नेरा आय ऊभा तिण ठांम।
सुश्रुषा करता एकाग्र चित्त, सेवा भगत करें गुणग्रांम।।
४. सेनापती रत्न ने गाथापती, वढइ ने प्रोहित पिण आंम।
शेष राजादिक कह्या तके, दिखण पावडीयें चढीया छे तांम।।
५. ॲ पिण प्रदिखणा करता थका, राजां कीयों तिमहीज ताम।
सेवा भगत तिम हीज करें, भरत जी रा करें गुणग्राम।।
६. जब आभीयोगी देवता भणी, बोलाए कहें भरत जी आंम।
सिघ्र करो देवाणुप्रीया, राज अभीषेक काम।।
७. महर्थ मणी
राज अभीषेक
रत्नादिक तणों, मोटां जोग करवा भणी, सर्व सझ करे आंण
अनूप। सूंप।।
८. ते देव सुण हरषत हवों, वचन कर लीधो परमाण।
ते इसांणकुण में जायनें, वेकें समुदघात कीधी जांण।।
९. ते विजय पोलीया नी परें, अजें कहणे सर्व इधकार।
ते जीवाभिगम उपंग में, जोय लेंणों विसतार।।