________________
भरत चरित
३३१
३. सारा सार्थ (परिवार) सम्मिलित होकर मन में अत्यंत उत्साह से भरतजी के सामने जा रहा है । सोचता है कि जल्दी जाकर वर्धापन करें।
४. श्रेष्ठ रुचिकर गीत-संगीत, वाद्ययंत्र, स्वस्तिक, ध्वजा, पताका आदि मांगलिकों का बहुत बड़ा विस्तार किया गया।
५. दासी ने अपनी चिमटी से हीरे को पीसकर श्रेष्ठ स्वस्तिक किया । दासी का ऐसा जो बल कहा गया है यह कथा के अनुसार है ।
६. हीरे वज्र के समान इतने कठोर होते हैं कि उन्हें एरण पर रखकर कोई बलशाली घन से जोर से चोट करे तो भी जरा-सी खरोच नहीं आती।
७. या तो हीरा उछलकर अलग पड़ जाता है या एरण में प्रवेश कर जाता है या वह घन में प्रवेश कर जाता है पर उसमें किंचित् भी मोच नहीं आती।
८. ऐसे हीरों को दासी ने चिमटी से पीस दिया । वह दासी बड़ी बलवती है। उसने ऐसे हीरों से स्वस्तिक उकेर कर वर्धापन किया ।
९. वह विनीता नगरी के मध्य से होकर निकली और भरतजी के पास पहुंची। भरत नरेंद्र को देखकर उसको अत्यंत हर्ष उल्लास हुआ।
-
१०. अंजली जोड़कर प्रशंसा करती हुई गुणगान करती है । विविध प्रकार की बलैया लेती है, शीष झुकाकर विनयपूर्वक बोलती है।
११. आप सुख- समाधिपूर्वक विनीता नगरी में भले पधारे। हम आपके दर्शन के लिए सामने आए हैं। हमें आज आपके दर्शन हुए ।
१२. हमें लगातार साठ हजार वर्षों तक आपके दर्शनों का विरह पड़ा। इस प्रकार अनेक वचन कहते हुए हर्ष के आंसू निकल पड़े।
१३. वे जो बड़े-बड़े उपहार लाए थे, उन्हें भरतजी के चरणों में उपस्थित किए। भरतजी ने भी प्रसन्नता से उनके उपहारों को स्वीकार किया । उन्हें अलग-अलग मधुर वचन से आश्वस्त किया ।