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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० १५. निरघोष वाजंत्र वाजता थका, सुखें सुखें चालें तांमों जी।
जोजन जोजन रे आंतरें, लेता थका विसरांमों जी।।
१६. में तो नगर वनीता आयनें, करसी वनीता नो राजो जी।
राज छोडेने जासी मोक्ष में, सारसी सर्व आत्म काजो जी।।