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भरत चरित
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५. अनेक कौतुक करने वाले, कंदर्प कथा कहने वाले, अनेक कौत्कुच्य करने वाले तथा मुखर वाचाल भी हैं ।
६. अनेक गीत गाते हुए, अनेक वाद्य बजाते हुए तथा अनेक नृत्य करते हुए, हंसते हुए, स्थान-स्थान पर क्रीड़ा रमत करते हुए ।
७. अनेक परस्पर गीत सिखाते हुए - परस्पर गीत सुनाते हुए, अनेक मुंह से शुभ वचन बोलते-बुलबाते हुए ।
८. अनेक शोभा-शृंगार तथा अनेक प्रकार के फेन-फितूर करते हुए ।
९,१०. अनेक जय-जय शब्दों का प्रयोग करते हुए, अनेक मुंह से मंगल वाचन करते हुए, स्थान-स्थान पर मुख के आगे घोड़े - घुड़सवार आदि विविध विस्तार के साथ औपपातिक सूत्र के अनुसार अनुक्रम से चल रहे हैं।
११. दोनों ओर नाग हस्ती उनके महावत, रथ तथा पालकियां सम्यग् रूप से चलती हुई सुशोभित हो रही है। इस तरह भरत विनीता की ओर चल रहा है।
१२. भरत नरपति हस्तीरत्न पर बैठे हुए पूनम के चंद्रमा की तरह सुशोभित हो रहे हैं। ऋद्धि से परिवृत्त प्रत्यक्ष देवेंद्र की तरह दिखाई देते हैं ।
१३,१४. चक्ररत्न के द्वारा दिखाए गए मार्ग से भरत नरेंद्र चल रहे हैं । उनके पीछे-पीछे राजाओं के अनेक वृंद समुद्र की तरह कल्लोल करते हुए बड़े आडंबर से आ रहे हैं। वे सर्वरुद्धि ज्योति से परिवृत्त सिंहनाद की तरह हिलोरें ले रहे हैं ।