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भरत चरित
१६. उनका बल, तेज, पराक्रम जोवनपर्यंत एक जैसा रहेगा। उसमें हीनता नहीं आएगी। उनके पुण्य का संचय परिपूर्ण है।
१७. उनका शरीर छिद्र रहित घन की तरह सघन है, दोष रहित है। वह अनेक शुभ लक्षणों से युक्त है।
१८-२२. उसमें मत्स्य, झूसर, भंगार, कलश, वर्धमान, भद्रासन, शंख, चमर, पंख, पताका, चक्र, हल, मूसल, रथ, स्वस्तिक, अंकुश, चंद्रमा, सूर्य, यज्ञाग्नि, सागर, इन्द्रध्वज, पृथ्वी, पद्म-कमल, हाथी, सिंहासन, दंड, कछुआ, चंग, पर्वत, घोड़ा, मुकुट, कुंडल, नंद्यावर्त, धनुष, भाला, भवन-विमान आदि एक हजार आठ शुभ लक्षण यथास्थान विद्यमान हैं। उसमें किसी प्रकार का दोष नहीं मिलता है। वे ऐसे ऐसे अलग-अलग दीखते हैं जैसे किसी चित्रकार ने चित्र उकेरे हों।
२३. उनके हाथ-पैर आश्चर्य कारक हैं। उनमें सभी शुभ लक्षण समाए हुए हैं। उनका रोम-जाल ऊर्ध्वमुख अंकुरों के समान है।
२४. उनका रोम-जाल मक्खन जैसा सुकुमार और चिकना है। उनका आकार श्रीवत्स स्वस्तिक जैसा है। गंगा के आवर्तन जैसा उसका विस्तार है।
२५. उनकी छाती चौड़ी और श्रेयस्कर है। उस पर श्रीवत्स लक्षण का आकार है। उस पर सुरूप स्तन भी शुभ लक्षण युक्त हैं।
२६. भरत नरेश आर्यक्षेत्र में कौशल देश की विनीता नगरी में पैदा हुए। शुभ लक्षणों के साथ उन्होंने देह को धारण किया।