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भरत चरित
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२. पुण्य से संपदाएं सामने आकर मिलती हैं। यही सम्पत्ति का मूल है। पुण्य से बड़ी-बड़ी पदवियां मिलती हैं। पुण्य से सब कुछ अनुकूल हो जाता है।
३. पुण्य के प्रताप से भरत नरेंद्र सब लोगों को अमृत के समान मीठा लगता है। उसको कैसी-कैसी संपदाएं प्राप्त हुई हैं।
४. देवता भी भरत राजेंद्र की सेवा करते हैं। वह जहां निवास करता है वहां बयालीस मंजिल के महल खड़े रहते हैं।
५. वे रत्नजटित बयालीस मंजिल के महल दीखने में भी सुंदर लगते हैं। भरतजी वहां क्रीड़ा करते हैं।
६. उन महलों के जाली-झरोखे अत्यंत प्रकाशकर हैं। वहां हीरों तथा मणिरत्नों की जगमग ज्योति जग रही हैं।
७. सेना जहां पड़ाव करती हैं वहां सबके यथायोग्य घर-दुकान मंदिर आदि आवास-निवास की व्यवस्था भी देवता करते हैं।
८. भरतक्षेत्र का अधिपति पूनम के चंद्रमा के समान लगता है। उस इंद्रोपम राजा को देखने से ही आनंद का अनुभव होता है।
९. देव-देवियों के वृंद को उन्होंने नतमस्तक कर दिया। उनके उपहार लेकर उन्हें अपना सेवक स्थापित कर, आज्ञा मनवाकर उन्हें विदा किया। यह सब पुण्य का प्रताप है।
१०. भरतक्षेत्र के समस्त राजाओं को अपनी प्रजा बना लिया। सबको सेवक स्थापित कर स्वयं सबके महंत बन गए हैं।
११. वे एक को आज्ञा देते हैं तो अनेक हाजिर हो जाते हैं। सभी जी हां-जी हां करते हैं, यह पुण्य की विशेषता है।