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दोहा
१. कल्याणकारिणी बत्तीस हजार ऋतु कन्याएं हैं। वे अमृत के समान सुखकारी हैं। उनका स्पर्श अत्यंत सुखदायक है।
२. वे मनोहर एवं अनुपम रूप वाली बत्तीस हजार कन्याएं अनेक जनपदों के राजाओं और राजप्रमुखों की पुत्रियां हैं।
३, ४. एक-एक कन्या के साथ दो-दो बारंगणा के हिसाब से चौसठ हजार तथा कुल मिलाकर एक लाख बानवे हजार स्त्रियों का अंतःपुर भरतजी के साथ विनीता नगरी में अनुक्रम से चल रहा है। उनके पीछे बत्तीस हजार नर्तक बत्तीस प्रकार के नृत्य करते हुए चल रहे हैं ।
५. उनके पीछे तीन सौ साठ रसोइये अनुक्रम से चल रहे हैं । उनके पीछे सर्वलोक प्रसिद्ध अट्ठारह श्रेणि- प्रश्रेणि के लोग भी चल रहे हैं।
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६. फिर चौरासी लाख मनोहारी हाथी, घोड़े, रथ तथा छिन्नु करोड़ पैदल सैनिक विधिपूर्वक चल रहे हैं।
७. उपर्युक्त सभी अनुक्रम से चल रहे हैं। पुण्य के प्रमाण से भरतजी को यह ऋद्धि-संपदा प्राप्त हुई है ।
ढाळ : ५१
संसार में पुण्य मधुर है
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१. इसीलिए सब लोग इसमें रुचि ले रहे हैं । पुण्य के बिना संसार में सब लोग सबको व्यर्थ मानते हैं ।