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भरत चरित
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६. पांच सौ भैंसो में जितना बल होता है उतना बल एक हाथी में होता है। पांच सौ हाथियों में जितना बल होता है उतना बल एक सिंह में होता है ।
७-८. दो हजार सिंहों में जितना बल होता है उतना बल एक अष्टापद में होता है। दस लाख अष्टापदों में जितना बल होता है उतना बल एक बलदेव में होता है तथा बीस लाख अष्टापदों जितना बल एक वासुदेव में होता है। चालीस लाख अष्टापदों जितना बल एक चक्रवर्ती में होता है ।
९. एक करोड़ चक्रवर्ती में जितना बल होता है उतना बल एक सामानिक इंद्र में होता है। एक करोड़ सामानिक इंद्रों में जितना बल होता है उतना बल एक इंद्र में होता है।
१०. अनंत इंद्रों में जितना बल सत्त्व होता है उतना एक तीर्थंकर में होता है । यहां भरतजी के प्रकरण में सबका बल बताया गया है I
११. सार पुद्गलों से ठसाठस भरा उनका शरीर अत्यंत सुदृढ़ है । उनके शरीर का तेज-उद्योत ऐसा है जैसे जगमग ज्योति जल रही हो ।
१२. उनका स्थिर संहनन अत्यंत गाढ है। उनकी हड्डियां अत्यंत स्निग्ध हैं । उनके अंगोपांग परिपूर्ण हैं। उनका संस्थान एवं आकृति अत्यंत सुरूप सुंदर है।
१३. उनके शरीर का रंग एवं कांति भली भांति रुचिकर लगती है । पुण्य के प्रमाण स्वरूप उनका स्वर एवं वाणी मधुर है ।
१४. उनकी प्रकृति - स्वभाव अच्छा है। उनका शील- आचार निर्दोष है। बड़ेबड़े राजा अपना अभिमान छोड़कर उन्हें सम्मान देते हैं ।
१५. उनका आभामंडल रोग रहित है। उनकी काया भी सौभाग्यमयी है । उनके वचन प्रधान, चातुर्य, युक्ति और बुद्धिमता से परिपूर्ण हैं ।