________________
२७०
भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१०
२. तीन दिन पूरा हूआं ताहि, आय बेंठा अश्व रथ माहि हो।
अनेक वाजंत्र रह्या , वाज, सीहनाद ज्यूं करता ओगाज हो।।
३. जिहां चूल हेमवंत , ताम, भरत नरिंद आया तिण ठाम हो।
चूल हेमवंत सुं तिण वार, रथ सिर फरस्यों तीन वार हो।।
४. रथ ऊभों राख्यों तिण वार, मागध तीर्थ जिम विस्तार हो।
इषू बांण तिण ठांमें चलायों, बोहीत्तर जोजन गयों छे ताह्यो हो।।
५. बाण पडीयों त्यांरी मरजादा में देख, जब जाग्यों त्यांने धेष विशेख हो।
बांण लीधो तिण हाथ मझार, नाम वाच कीयों निस्तार हो।।
६. जाण्यों उपनों भरत नरिंद, पांम्यों मन माहे इधिक आणंद हो।
मागध तीर्थ ज्यूं विस्तार, पीतदान ल्यायो तिण वार हो।।
७. भेटणों ले जाऊं तास, भरत नरिंद रे पास हो।
सर्व ओषधी फूलादिक अनेक, वनसपती जात विशेख हो।
८. ल्यायों चंदण गोसीसों ताम, वळे फूलां री माला अभिराम हो।
पदमद्रहनों प्रांणी ल्यायों ताजों, राज अभीषेक करवा काजो हो।
९. ओर गेंहणा ल्यायों तिण वार, मागध तीर्थ जिमविस्तार हो।
भेटणों आण मेल्यों छे तास, भरत नरिंद रे पास हो।।
१०. बेहूं हाथ जोडी सीस नाम, वळे करवा लागों गुणग्राम हो।
थे भरत नरिंद राजांन, हूं थारों छू वसवांन हो।।
११. बेहूं हाथ जोडी कहें आम, हूं सेवग थे मांहरा सांम हो।
हूं आप तणो कोटवाल, उत्तर दिस तणों रुखवाल हो।
१२. हूं किंकर चाकर छू तुम्हारों, रहूं छू थांरां देस मझार हो।
मागध तीर्थ जिम सर्व जांणों, विनों कीधों में मोटें मंडाणो हो।।