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भरत चरित
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२. उसका रकाब कंचन मणिरत्न जटित स्वर्णमय है । उस पर नाना प्रकार की जालियां, घंटियां एवं लघु घुंघरियां लहरा रही हैं।
३. वे मोतियों की जालियों से परिमंडित हैं । उन पर मोतियों के गुच्छे लटक रहे हैं। इन सबसे सुशोभित वह घोड़ा अद्वितीय है ।
४. उसका मुख करकेतन, इंद्रनील, मरकेतन तथा मसारगल इन चारों जातियों के रत्नों से सुघड़ रूप से सुशोभित है।
५. सूत से पिरोए हुए मानकों से उसका मुख शृंगारित है । पद्मवर्ण कनकरत्न से देवताओं द्वारा सुघड़ तिलक किया हुआ है 1
६. सुरेंद्र की सवारी के योग्य वह वाहन अनुपम रूप से श्रृंगारित किया हुआ अत्यंत सुरूप दिखाई देता है । उसके आभूषण जब इधर-उधर हिलते हैं तो दर्शक के मन को मोह लेते हैं ।
७. उसकी आंखें नींद में भी बंद नहीं होतीं । वे कमलपत्र की तरह सुशोभन हैं । उसका चंचल शरीर अपने स्वामी का कार्य करने में पूर्ण समर्थ है।
८. डंस - मंस से सुरक्षा तथा शोभा के लिए उसका शरीर सदा रत्नजटित वस्त्रों से ढका रहता है। उसका तलवा तथा जीभ तप्त स्वर्ण के वर्ण का है। मुंह पर श्रीलक्ष्मी का अभिषेक विराजमान् है ।
९. उसके खुर सुंदर तथा चच्चर पुट चरण धरणी तल पर आघात करते हुए चलते हैं। वह दोनों पैर एक साथ उठाता है। पैरों से धरती का खनन एवं गड्ढा नहीं
करता ।
१०. वह कमलनाल एवं पानी पर शीघ्रता से चलता है। कमल - पानी की निश्रा के बिना अपने बल पराक्रम से चलता है ।
११. माता की जाति और पिता का कुल, इन दोनों पक्षों से वह पूर्ण निर्मल है। उसका रूपाकार सुंदर है । प्रशस्त एवं विशुद्ध लक्षणों से वह श्रेष्ठ है।