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भरत चरित
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१५. हमने जो अपराध किया उसे आप क्षमा करें। आप हम पर ठंडी नजर करें जिससे हमें परम शांति मिले।
१६. इस भव में हम जीवन ऐसा अकार्य नहीं करेंगे। हम हाथ जोड़कर नतमस्तक होकर आपके पैरों में पड़ते हैं ।
१७. हम आपके शरणागत हैं । हमें आपका ही आधार है । हम आपके किंकर हैं- यों बार-बार कहने लगे।
१८. तब भरत महाराज ने आपात चिलाती जो भारी उपहार लाए थे, उसे स्वीकार किया ।
१९,२०. भरतजी ने उनसे कहा- जाओ देवानुप्रियों ! तुम हमारी भुजा की छाया में निर्भय-सुखपूर्वक निवास करो। तुमको किसी का किंचित् भय नहीं है । यों कहकर भरतजी ने उनका पूरा सत्कार किया ।
२१. वस्त्र आदि देकर सत्कार सम्मान - बहुमान किया। यों सत्कार-सम्मानपूर्वक भरतजी ने उन्हें विदा किया।
२२. उन्हें अपनी आज्ञा मनवाकर सेवक बना लिया । पर इसे माया और निरर्थ मानते हैं। वे वैराग्य प्राप्त कर इन्हें छोड़ साधना कर सीधे मोक्ष में जाएंगे।
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