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भरत चरित
२४९ १४. अतः तुम लोग भी अभिमान छोड़कर भरत राजा के पास जाकर उसके पैरों में पड़ो। जीवन को बचाने का यही उपाय है, और कोई उपाय नहीं है।
१५-१७. इसलिए तत्काल स्नान कर शुचि होकर वलिकर्म-तिलक छापे कर, इस दुःस्वप्न के निवारण के लिए प्रायश्चित्त के रूप में मांगलिक कर गीले वस्त्र पहनकर, वस्त्रों के किनारों को नीचा रखते हुए, अधोमुख धरती की ओर देखते हुए, भारी रत्नों का उपहार लेकर, दोनों हाथ जोड़कर भरत नरेंद्र के चरणों में उसे उपहत करते हुए उसके पैरों में पड़ो।
१८. पुरुषोत्तम भरतेश्वर ही तुम्हें शरण दे सकेगा। तुम उसके सामने जाते हुए किंचित् भी भय मत करो। भरत ही तुम्हारे लिए कल्याणकारी होगा।
१९. इस प्रकार देवता इन्हें बारंबार हित-शिक्षा देकर अपने स्थान पर गए। आपात चिलातियों ने भी उसे स्वीकार किया।
२०. भरत के पुण्य के प्रसाद से सारे ही प्रणत होंगे। पर भरतजी इनमें रक्त नहीं होंगे। वे तो दीक्षा लेकर मुक्ति में जाएंगे।