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भिक्षु वाङ्मय - खण्ड - १०
१८. तेसठ लाख पूर्व वरसां लगें, श्रीरिखभदेवजी कीयो राज जी । भोगावली कर्म पूरा हुआं, काम भोग सूं गयो मन भाज जी ।।
१९. सो पुत्रां ने राज बांटे दीयो, पछें लीधों छें संजम भार जी । भरतजी राज वनीता रों करे, तिणरों सांभलजो विसतार जी ।।