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भरत चरित
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८. उन्होंने असि, मषि एवं कृषि इन तीनों कर्मों का भी लोगों को प्रशिक्षण दिया। उसी के अनुसार स्थान-स्थान पर लोगों ने कार्य करना शुरू कर दिया।
९. ऋषभ राजा के सुनंदा और सुमंगला नाम की दो रानियां हैं। वे रूप में अप्सरा सरीखी तथा अत्यंत कुशल, चतुर एवं प्रवीण हैं।
१०. वे लावण्य तथा यौवन से सुशोभित, चौसठ कलाओं में कुशल एवं समस्त स्त्री-गुणों से संपन्न हैं। जिनेश्वर ने उनका विस्तार से वर्णन किया है।
११. ऋषभ की आयु जब छह लाख पूर्व हुई तब सुमंगला रानी की कुक्षि में भरत चक्रवर्ती उत्पन्न हुए।
१२. सवा नौ महीनों के पूर्ण होने पर विनीता नगरी में भरतजी का जन्म हुआ। ब्राह्मी उनके युगल के रूप में पैदा हुई।
१३. बड़ी धूमधाम से उनका जन्मोत्सव तथा अनुक्रम से नामकरण किया गया। वे वैसे ही सुख-समाधिपूर्वक बड़े हुए जैसे चंपक लता गिरि गुफा में विकसित होती है।
१४. सुमंगला ने क्रमशः अट्ठानवें अन्य पुत्रों को भी जन्म दिया। वे सब भरत के सहोदर भाई हैं। उनके अलग-अलग नाम हैं।
१५. सुनंदा ने बाहुबल (पुत्र) तथा सुंदरी (पुत्री) के रूप में एक युगल को जन्म दिया। उसके बाद सुनंदा के कोई संतान नहीं हुई।
१६. इस प्रकार ऋषभ राजा के सौ पुत्र एवं दो पुत्रियां पैदा हुईं। वे सब रूप में सुंदर एवं उत्तम जीव हैं।
१७. शाल वृक्ष का परिवार शाल ही होता है, उसी प्रकार ऋषभ के सारे पुत्रपुत्रियां इसी भव में आठों कर्मों का क्षय कर मोक्षगामी होंगे।