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भरत चरित
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४. देव, दानव, व्यंतर, गंधर्व चारों प्रकार के देवता भरत नरेंद्र पर कोई उपद्रव नहीं कर सकते।
५,६. फिर भी तुमने यहां आकर अभी भरतेश्वर की सेना पर वर्षा की। सात दिन तक लगातार मूसलधार पानी बरसाया। अभी भी तुम्हारा वही ध्यान है । क्या तुम्हारी अक्ल, ज्ञान- बुद्धि भ्रष्ट हो गई है ।
७. तुमने बहुत दुष्ट कार्य किया है । आज तुम्हारी लाज शर्म मिट जाएगी। या तो अभी वर्षा को समेट लो या फिर अपने किए का फल पाओगे।
८. यदि अपनी इज्जत - आबरू कायम रखना चाहते हो तो तत्काल इस माया को समेट लो। यदि तुम इसे सुगम मानकर विलंब करोगे तो तुम्हारे जीवन का अंत आ गया लगता है।
९. यह सुनकर मेघमुख - नागकुमार देवता अत्यंत भयभीत हुआ । अत्यन्त त्रस्त होकर बोला- हमने जान लिया है। अब आगे हम ऐसा काम कभी नहीं करेंगे।
१०.
उनके सामने देखकर भयभ्रांत होकर तत्काल वर्षा को समेट लिया और डरता हुआ वहां से भागकर आपात चिलाती के पास आए ।
११. आपात चिलातियों से कहा- भरत नरेंद्र छह खंड का स्वामी है । राजेंद्र है, चक्रवर्ती है, पूनम के चंद्रमा जैसा है।
१२. चारों ही प्रकार के देव भरत राजा को भगाने में असमर्थ हैं। इसे उपद्रव भी नहीं कर सकते। यह बहुत बड़ा नरेंद्र - राजेंद्र है ।
१३. हम तुम्हारी प्रीति के कारण इसे उपसर्ग देकर लज्जित हुए। उसे कोई उपसर्ग - दुःख नहीं हुआ। हम ही भागकर आए हैं।
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