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भरत चरित
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२. उसमें राज और लक्ष्मी के चिह्न अंकित हैं । अर्जुन स्वर्ण से वह ढका हुआ है। छत्र के पीछे का भाग उज्ज्वल पंडुर - श्वेत है ।
३. तपनीय रक्त स्वर्ण के उसके चारों ओर पाटिए लगे हुए हैं। वे अत्यंत श्री एवं शोभायुक्त हैं । दर्शक का मन हर्षित हो जाता है ।
४,५. उसका रूप पूनम के चंद्र मंडल के समान है। नरेंद्र की भुजा के प्रमाण वह लंबा-चौड़ा है। उसका सहज स्वभाव निरंतर एक जैसा है। जब वह विस्तृत होता है अनेक योजन प्रमाण फैल जाता है । वनखंड में जैसे चंद्रविकासी धवल कमल सुशोभित होता है वैसे ही छत्ररत्न भरत राजा का चलता हुआ विमान जैसा प्रतीत होता है।
६. सूर्य के आतप, आंधी तथा वर्षा- इन तीनों दोषों को नष्ट कर दे ऐसा छत्ररत्न सुखकारी है। वह सेना की सुरक्षा करता है ।
७. पूर्व में विशिष्ट तप किया उससे इस निधान की प्राप्ति हुई। यह बहुत सारे अखंडित गुणों का प्रदाता है तथा दुखों को दूर करने वाला है।
८. यह छहों ऋतुओं के सुख का प्रदाता है। इससे दुःख दूर हो जाते हैं । इस छत्र की छाया भी अत्यंत सुखकर है। इससे सब रोग-शोक का विलय हो जाता है ।
९. यह छत्ररत्न अति विशिष्ट है । गुणोपपेत उन्मान से सुशोभित है । जिस किसी पुण्यहीन व्यक्ति को यह नहीं मिल सकता ।
१०. उसका अधिपति बहुत गुणी होता है। वह निश्चय ही छह खंड का राज्य करता है। जिसके एक हजार आठ शुभ लक्षण होते हैं, वही इसका अधिपति बन सकता है।