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२२२ ३. सेन्या
सेन्या
भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० अणी हणांणी रे, दही जेम मथांणी रे। थी हूंती आघी रे, तेतो हार भागी रे।
आपातचिलात त्यांने जीती लीया रे।।
४. वीर परधान जोधा रे, ते पर गया बोदा रे। ध्वजा पताका पाड्या रे, भंडी रीत नसाड्या रे।
वळे डेरा ने लूटे लीया त्यांरा जोर सूं रे।।
५. हुंता घणा अहंकारी रे, त्यांने भूय हुइ भारी रे। जोर कोइ न लागो रे, दिसो दिस गया भागों रे।
पाछोंने मंडीयों नहीं जाॲतेहथी रे।।
६. सेन्या जाओं न्हाठी रे, दिसों दिस जाों त्राठी रे। सेन्यापती त्यांने देखो रे, जाग्यों धेष वशेखो रे।
अणी भागी देखेनें सेनापती कोपीयो रे।
७. कमला मेल घोडो रे, तिणरें तिणसूं जोडो रे। ते अश्वरत्न में सेंठो रे, तिण ऊपर बेंठो रे।
तिण खडग रत्न लीयों भरत नरिंद रा हाथ थी रे॥
८. अश्वरत्न मतंगो रे,
तिण अश्व असवारो
खडग रत्न , चंगो रे। रे, खडग हस्त मझारो रे।
सेनापती जोध जोरावर सूरमो रे।।
९. ते सीहनाद ज्यूं गाजे रे, पडगो घोडा रो वाजे रे। हाथ में खडग झलकें रे, जांणे वीजलीं चलकें रे।
तिणनें देखेने सगलाइ धड धड धूजीया रे।।
१०. आपातचिलातो
आयों तिण
रे, त्यांने करवा निपातो रे। ठामों रे, त्यांतूं कीयों संग्रामों रे।
खडग रत्न सूंकतल कीयो तेहनों रे।।