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दोहा १. वैताढ्यगिरि के इस पार दो खंडों को साधकर अब उस पार जाना है। उसका मार्ग तामस गुफा से होकर निकलता है। तामस गुफा के दरवाजे बंद हैं।
२. इस अवसर पर भरतजी सेनापति को बुलाकर तामस गुफा के दक्षिणी दरवाजे को जल्दी खोलने की बात कहते हैं।
३. दरवाजे खोलकर मेरी आज्ञा को जल्दी से जल्दी प्रत्यर्पित करो। सेनापति भरतजी की यह बात सुनकर हर्षित हुआ।
४. सेनापति वहां से निकलकर अपने आवास पर आया और पौषधशाला में आकर तीन दिन का पौषधोपवास किया।
५. तीन दिनों तक एकाग्रचित्त से मन में यही ध्यान और चिंतन करता रहा।
६,७. तीन दिन पूरे होने पर स्नानगृह में स्नान-मर्दन कर, आभूषण पहनकर धूप, फूल, गंध द्रव्य और माला हाथ में लेकर बाहर आया। अब उसके साथ कौन-कौन हुए उनका वर्णन किया जा रहा है।
ढाळ : ३४
पुण्य के फलों को देखें। १. सेनापति तामस गुफा द्वार खोलने चला तब अनेक राजा, ईश्वर, तलवर, कोटवाल, मांडबी आदि उसके पीछे चलने लगे।