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भरत चरित
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१६. इनके सेना का ठाठ लग रहा है । देव - देवियों का जमघट लगा हुआ है। ऋद्धि में वैश्रमण इंद्र के समान हैं।
१७. इनकी प्रजा का शोषण करने की नीति नहीं है। राज्य की रीति का उल्लंघन नहीं करते। भरतक्षेत्र में पृथ्वीपति इंद्र हैं ।
१८. इनके परिणामों में दया करुणा है । कभी अकार्य नहीं करते। सहज ही इनकी कषाय मंद हो गई है।
१९. चारित्र ग्रहण कर इन्हें इसी भव में मुक्ति में जाना है। ये अनेक मुनि जनों मुनींद्र होंगे।
२०. यद्यपि अभी उत्कृष्ट भोग भोग रहे हैं। पर इनके परिणाम अनासक्त है। इसलिए निश्चय ही संसार के फंद से मुक्त हो जाएंगे।
२१. ये विरक्त होकर दीक्षा लेंगे। आठों ही कर्मों का क्षय कर सदानंद मुक्ति में
जाएंगे।