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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ५. देव देवी त्यांने वस कर लीधा, त्यांरा भेटणा ले लेने सेवग कीधा।
त्यांने मनाय कीयों आणंद।
भेटणा ले ले आवें, जय विजय करे त्यांने वधावें।
मुख बोलें विडदावली तणा वृंद।।
७. सूर्य उगां अंधारो दुर भागें, कमलां रा वन सूता जागें।
एहवों छे सूर्य दिनकर इंद।।
८. तिणसूं वेंरी दुसमण तिणरा भागें, सर्व रेत भणी गमतों लागें।
इण न्याय सूर्य जिम नरइंद।।
९. बीज अल्प कला चंद निजर आवें, पछे दिन दिन कला वधती जावें।
सोलें कला हुवें पुनमचंद।।
दिन दिन संपत इधिकी थावें, दिन दिन प्रथवी में आंण मनावें।
__ ओ पूरों होसी छ खंड तणों इंद।।
११. चवदें रत्न नें नव निधान, चोसठ सहंस सेवग मोटा राजांन।
रिध करने परिवस्यों जांणे सक्रइंद।।
पाछां भागण रों छे नेम, छह खंड में वरतायों कुसल खेम।
अडिग जिम में मेरू नगइंद।।
१३. देव देव्यां ने पाय नमण कीधा, सर्व राजां में वस कर लीधा।
तिण करनें वाज्यों में राजंद।।
१४. नाग
कुमार में धरणिंद, सुवर्ण कुमार में वेणुदेविंद।
ग्रह गण नक्षत्र में सोभे चंद।।
१५. देवता पिण सेवा करें दिनरात, वळे नमण करें जोडी हाथ।
भरतक्षेत्र में उगों ज्यूं दिनकर इंद।।