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दोहा १. सिंधु नदी अत्यंत वेग से बह रही है। उसमें अगाध पानी है। दूसरा किनारा नजर नहीं आता। सैनिक लोग उसे देख भयभीत हो गए।
२. सोचने लगे कि सिंधु नदी को पार कर दूसरे किनारे कैसे जाएंगे? तब सेनापति ने चर्मरत्न अपने हाथ में लिया।
___ ३. वह चर्मरत्न अत्यंत मनोहर है। उसमें अनेक विशेषताएं हैं। मैं उनका थोड़ासा वर्णन करता हूं। उसे ध्यान लगाकर सुनें।
ढाळ : ३१
१. गुणरत्नों की खान चर्मरत्न भरतजी की आयुधशाला में उत्पन्न हुआ। ऐसे रत्न महा पुण्यवान् जीव के ही अचिंत्य रूप से पैदा होते हैं।
२. उस चर्मरत्न का आकार श्रीवत्स साथिये जैसा है, उसका रूप अनुपम है। उस पर मोती, तारा तथा अर्धचंद्र सरीखे अनेक चित्र आलिखित हैं।
३. वह अत्यंत अचल, अकंप तथा दृढ है। भेदने से भिन्न नहीं होता। जिनेश्वर देव ने वज्ररत्न की तरह उसमें भी अनेकानेक गुण बताए हैं।
४. चर्मरत्न भरतजी के क्या-क्या काम आता है इसे ध्यान लगाकर सुनें। नदी और समुद्र पार करवाने का गुण इसमें है।
५,६. युक्तिपूर्वक बोने से उस पर जव, साल, वृही, कोद्रव, राल, तिल, मूंग, मास, चवला, चना, तूवार, मसूर, कुलत्थ, गेहूं, नीपाव, अलसी, सण आदि सतरह प्रकार के धान्य पैदा हो सकते हैं। अनेक प्रकार के फल भी उस पर पैदा हो सकते हैं।