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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ४. तीन दिन पूरा हूआं, आसण चलीयों तांम लाल रे।
जब अवधि प्रज्यूंज्यो देवता, भरतजी ने देख्या तिण ठाम लाल रे।।
वेंताढगिरी देव नी परें, सगलोंइ कहिणों विस्तार लाल रे। पिण भेटणा माहे फेर छे, त्यांरों जूदो जूदो निसतार लाल रे।।
६. आभरण करंडीया रत्न में, आभरण हार अर्धहार लाल रे।
इंगद कनक में मुक्तावलीं, केउडो ने कडा श्रीकार लाल रे।।
७. बाह्यां ने बेंहिरखा वळे मुद्रका, कांना कुंडल उर सत श्रीकार लाल रे।
चूडामणी अति रलीयामणो, रलीयांमणों तिलक निलाड लाल रे।।
८. इत्यादिक आभूषण हाथे लीया, ते अस्त्री रत्न रे काज लाल रे।
ते ले आयों सिधर उतावलों, जिहां बेंठा भरत माहाराज लाल रे।।
९. आकासें आय उभों रह्यों, मागध देव तणी परें जांण लाल रे।
दस दिस उद्योत करतों थकों, बोलें मीठी बांण लाल रे।।
१०. हाथ दोनइ जोडनें, विनों कीयों मस्तक चढाय लाल रे।
नमसकार कीयों वळे भरत नें, मस्तक नीचों नमाय लाल रे।।
११. जय विजय करे वधायनें, विडदावली अनेक बोलाय लाल रे।
कहें हूं किरतमाली छू देवता, आप तणो सेवग छू ताहि लाल रे॥
१२. हूं आप तणों वसवांन छू, हूं आप तणों कोटवाल लाल रे।
हूं किंकर छू आपरों, आग्या तणों प्रतिपाल लाल रे।।
१३. मागध कुमार देव नी परें, करें घणा गुणग्राम लाल रे।
हूं पीतिदान ल्यायों भेटणों, ते किरपा करे ल्यों सांम लाल रे।।
१४. इम कहेनें भेटणों, मुख आगल मेल्यो ताम लाल रे।
पछे सीख मांगेनें चालीयों, पाछो गयों निज ठाम लाल रे।।