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दोहा १. वैताढ्य गिरि देव के जाने के बाद भरतजी स्नानगृह में आए। स्नान कर बाहर निकल कर भोजन मंडप में गए।
२-४. भोजन कर बाहर निकल कर उपस्थानशाला में आए। सिंहासन पर बैठकर श्रेणि-प्रश्रेणि के लोगों को बुलाकर कहा- वैताढ्य गिरि देवता ने नतमस्तक होकर मेरी आज्ञा स्वीकार की, मेरा सेवक बना, इसलिए धूमधाम से आठ दिन का महोत्सव कर मेरी आज्ञा को प्रत्यर्पित करो। श्रेणी-प्रश्रेणी यह सुनकर हर्षित हुए।
५. आठ दिन का महोत्सव पूरा हुआ तो फिर चक्ररत्न आयुधशाला से बाहर निकल कर आकाश में आ गया।
ढाळ : २८
दिनोंदिन भरतजी के पुण्य प्रबल हो रहे हैं। १. अंबर तल को पूरता हुआ चक्ररत्न पश्चिम दिशा में चला। उसे तामस गुफा की ओर बढ़ते हुए देखकर भरतजी को अपार हर्ष हुआ।
२. भरत नरेंद्र सेना सहित चक्ररत्न के पीछे-पीछे चलने लगे। तामस गुफा के न अति निकट न अति दूर सेना का पड़ाव किया।
३. कृतमाली देव को लक्षित कर पौषधशाला में जाकर छट्ठा तेला किया। एकाग्रचित्त होकर देवता का ध्यान ध्याने लगे।