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१.
२.
३.
४.
प्रभास
नां
विजय कटक
दुहा भणी,
देवता
में आयनें,
स्निांन करेनें
पाछें कह्यों तिण
८.
सेवग
निज गया मंजण घर
ठें हराय | माहि ||
नीकल्या,
आया उवठाण
साल ।
हीज विधें, सगलोंइ कहिणों संभाल ।।
तेरनें,
प्रश्रेणी
कहें
भरत
माहाराय ।
श्रेणी आंण मनाइ प्रभास देवता भणी, तिणरा करों महोछव जाय ।।
आगली रीतें महोछव करे, म्हारी आग्या पाछी सूंपे आय। ते सुनें मन हरषत महोछव हूआ, कीया
जाय ॥
५. आठ दिवस महोछव पूरों हूआं, जब चक्ररत्न तिण वार । आवधशाला थी बारें नीकल्यों, गयों आकास
मझार ॥
"
६. सिंधू नदी नों दिखण कूलें सिंधू देवी रा भवण तिण सांहमों चक्र जातो देखनें, लारें चाल्या भरतजी
७. सिंधू देवी रा भवण थी, नेंरा अलगा नही तिहां कटक उतार चोथों तेलों कीयों, पोषधशाला रे
वखांण ।
जांण ।।
ध्यान ध्यावें सिधु देवी तणों, तिणनें चिंतव रह्या मन सिधु देवी आवें छें किण विधें, ते सुणजों चित्त
ताहि ।
माहि ।।
मांहि ।
ल्याय ।।