________________
भरत चरित
३
इस तथ्य से परिचित थे कि संगीत का मनुष्य के मन पर गहरा प्रभाव होता है। भले ही उन्होंने संगीत का विधिवत् प्रशिक्षण नहीं लिया हो पर उनकी ग्रहण शक्ति इतनी प्रबल थी कि लोक गीतों को सुन-सुन कर उन्होंने अपने अभ्यास को प्रगुणित कर लिया । उनकी विपुल संगीतमय रचनाएं केवल उनके संगीत - प्रेम को ही नहीं दर्शाती हैं अपितु यह भी पता चलता है कि वे एक अच्छे गायक थे। उनका स्वर मधुर और संगीत प्रभावी था। संगीत उनके लिए मनोरंजन का विषय नहीं था अपितु वह उनकी साधना का एक अंग था। अपनी साधना से दूसरों को विभोर करने में भी उन्होंने सफलता प्राप्त की थी। जब आदमी संगीत की गहराई में उतर जाता है तो न केवल स्वयं ही लीन हो जाता है अपितु दूसरों को भी उसमें लीन बना देता है।
यह सच है कि दुनियां में कवित्व बहुत दुर्लभ है। वह आदमी को एक प्राकृतिक वरदान के रूप में उपलब्ध होता है । अभ्यास से भी आदमी का कवित्व पुष्ट होता है, पर जो प्रकृति से प्राप्त होता है उसकी महिमा कुछ अलग ही होती है। आचार्य भिक्षु एक रससिद्ध कवि थे। पद्य साहित्य की अनेक विशेषताएं होती हैं। पहली बात तो यह है कि पद्य में थोड़े में बहुत कुछ संकेत भर दिए जा सकते हैं। दूसरी बात यह है कि वह न केवल सुग्राह्य होता है अपितु उसके याद रखने में भी सुविधा रहती है। जिस बात को लोक चेतना में स्थापित करना हो उसके लिए पद्य रचनाएं सशक्त माध्यम बनती हैं। बहुत सारे संतों ने वाणियां बोली हैं, वे अधिकांश पद्य में ही हैं । महावीर - बुद्ध से लेकर कबीर, तुलसी, सूरदास तक अनेक संत इसके प्रबल साक्ष्य हैं। आचार्य भिक्षु भी उसी संत - परम्परा के एक अंग हैं। सचमुच उनके विचार - प्रचार में उनकी संगीत रुचि ने बहुत बड़ा योग दिया है। लोक चेतना को पकड़ पाने में उनके काव्य का अकृत्रिम होना भी बहुत बड़ी बात है । गहन से गहन तथ्य को भी इतने साफ, सरल और बेधड़क रूप से प्रकट करते हैं कि वह अपने आप सुगम बन जाता है । अनेक लोगों ने उनके पद्य साहित्य को कंठस्थ कर लोक चेतना को जागृत करने की परम्परा को आगे बढ़ाया है।
भरत चरित्र की रचना विवेचनात्मक है। चूंकि संतजनों को अपने श्रोताओं को निरंतर बांधे रखने के लिए कथा सूत्र को इस तरह लम्बाना पड़ता है जिससे वे अपने आपको अपने आसपास के वातावरण से जुड़े हुए अनुभव कर सकें । भरत चरित्र में गांव, नगर, भवन, शरीर, रथ, घोड़े, शास्त्र आदि अनेकों प्रसंगों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यहां हम उनके द्वारा किए गए अश्व - रत्न का हूबहू वर्णन प्रस्तुत करते हैं
'वह कमलामेल (जिसके दोनों खड़े कान आपस में मिलते हैं) अश्वरत्न अस्सी