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भरत चरित
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१७. पूनम के चंद्र के समान भरत नरेंद्र उसका अधिपति है। उसने अगाध संयम का पालन किया उससे उसे ऐसा बढ़ईरत्न प्राप्त हुआ।
१८. वह हाथ जोड़कर भरत नरेंद्र को इस प्रकार बोलता है- मुझे आप काम करने का आदेश दें। आदेश मिलने पर वह तुरंत उसे पूरा करने के लिए तैयार हो जाता है।
१९. ऐसे बढ़ईरत्न ने वहां (वरदाम तीर्थ में) सेना को उतारा । वहां पौषधशाला सहित लोगों के रहने के लिए आवासों का निर्माण किया।
२०. मुहूर्त भर में जैसा चिंतन किया था उसी तरह का पड़ाव देवताओं ने तैयार कर भरतजी को उनकी आज्ञा प्रत्यर्पित की।
२१. भरतजी यह सुनकर हर्षित हुए। यद्यपि पाप लगने के डर से उनका मन अंदर से धड़क रहा था, अंत में इन सबको छोड़कर वे इसी भव में मुक्ति जाएंगे।