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भरत चरित
१३५ ६. पानी पर नौका चलाने, उसमें पाट-बाजोट आदि रखने, अरहट आदि यंत्र बनाने में भी विशेषज्ञ है।
७,८. इस काल में मकान बनाना और इस काल में मकान नहीं बनाना तथा इस काल में मकान बनाना शुभ और इस काल में मकान बनाना अशुभ, इस प्रकार जिस काल में जो-जो करना उसका निर्णय करता है। वह ऐसा काल एवं शब्दशास्त्र का विशेषज्ञ है।
९. वह वृक्ष-लताओं आदि के गुण-अवगुण की पहचान भी कर सकता है। उनके निष्पादन की कला में भी निपुण है।
१०. सोलह प्रकार के प्रासादों के निर्माण में भी वह चतुर है। उनके लक्षण-गुणों की विधि की भी उसे पूरी जानकारी है।
११. वास्तुशास्त्र में चौसठ विकल्प कहे गए हैं। वह उनका भी विशेषज्ञ है।
१२. वह नंद्यावर्त, वर्द्धमान तथा स्वस्तिक इन तीनों स्वस्तिकों के गुण-अवगुण को जानता है।
१३. वह एक स्तंभ मकान, देवघर, वाहन, शिविका आदि का भी विशेषज्ञ है।
१४. इस प्रकार उस बढ़ईरत्न में अथाह गुण हैं। वह स्थपतिरत्न अगाध गुणों से परिपूर्ण है।
१५. एक हजार अधिष्ठायक देवता उसके पास रहते हैं। वे सेवक की तरह उसके कार्य में सहयोग करने के लिए तैयार रहते हैं।
१६. उसने पूर्व भव में जो पुण्य अर्जित किए थे वे इस भव में उदय में आए। इसलिए बढ़ईरत्न सबको हितकारी लगता है।