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भरत चरित
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ढाळ : २२
१. चक्ररत्न को आकाश में देखकर भरतजी को विशेष प्रसन्नता हुई। मागध तीर्थ देवता को अपना सेवक स्थापित कर दिया।
२,३. अब वरदाम तीर्थ को अधीन करने के लिए सेवक को बुलाकर कहते हैंहाथी, घोडा, रथ तथा पैदल- चतुरंगिनी सेना को सज्ज तथा पटहस्ती को सजाओ। यों कहकर भरतजी स्नानघर में प्रवेश कर गए। स्नान करके बाहर निकले तो ऐसा लगा जैसे निर्मल पूर्णिमा का चंद्रमा निकला हो।
४. मस्तक पर छत्र धारण करते हैं, दोनों ओर चमर डुलाते हैं। जैसा कि पहले बताया गया उसी प्रकार ठाठ-बाट से निकलते हैं।
५. भरत नरेंद्र अनेक सुभटों के वृंदों से घिरे हुए हैं। कई सैनिकों के हाथ में भारी खड्ग हैं तो कुछ सैनिकों के हाथ में नंगी तलवारें हैं।
६. कुछ के हाथ में बाधा है तो कुछ के मथ में धनुष है। कुछ के हाथ में फरार है तो कुछ के हाथ में त्रिशूल है।
७. इस प्रकार अनेक शस्त्र हैं। यहां सबका उल्लेख नहीं किया गया है। उनका अलग-अलग वर्णन जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति से जानना चाहिए।
८. अनेक लोगों ने विविध प्रकार की ध्वजा-पताकाएं हाथ में ले रखी हैं। हर्षविनोद में मस्त शूरवीर सिंहनाद की तरह बोल रहे हैं।
९. घोड़े हिनहिना रहे हैं। उनकी आवाज प्यारी लगती है। हस्तियों के गुलगुलाट से जैसे बादल गाज रहे हैं।
१०. रथ घनघनाहट कर रहे हैं। विविध प्रकार के वाद्ययंत्र बज रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे आकाश में मेघ गाज रहे हैं।