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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० २. वेंरी जीता नही त्यांने जीतजो रा०, जीतां री कीजों प्रतिपाल हो।
जय विजय होजों सांमी तुम तणी रा०, करजो थे राज विसाल हो।।
३. जय विजय करे वधायनें रा०, छ खंड रा सिरदार हो।
वळे विडदावली बोलें घणी रा०, वेश्यां ना मरदणहार हो।।
४. पूर्व दिस मागध तीर्थ तणों रा०, तुम देस तणों वसवांन हो।
हूं मागध कुमार छू देवता रा०, आयों हूं छोडे अभिमान हो।।
५. हूं किंकर छू आपरो रा०, सेवग छू आग्याकार हो।
हूं पूर्व दिस ना अंतनो रुखवाल छू रा०, विघन निवारणहार हो।।
६. जे केइ दुष्ट छे देवी देवता रा०, दुख दें लोकां में आय हो।
मार मिरगी रोगादिक फैलाय दें रा०, ते करवा न देसूं अन्याय हो।।
७. उपसर्ग देवादिक ना उपजें रा०, त्यांरों हूं मेटणहार हो।
हूं तो कोटवाल छू आपरो रा०, पूर्व दिस मझार हो।
८. हूं उत्तम पुरुष आया जाणनें रा०, भेटणों ल्यायों तुम पास हो।
ते म्हें आप तणे कारणे रा०, तुम पाय मूंकू छू तास हो।।
९. हार मुकट कुंडल कान में रा०, कडा हस्तां ना जांण हो।
बाह्यां ने पेंहरण बेरखा रा०, वस्त्र देवदुष वखांण हो।।
१०. ओर आभरण वळे आपीया रा०, नामकिरत निज बांण हो।
ओ पाणी , मागध तीर्थ तणो रा०, राज अभिक्षेक पिछांण हो।।
११. इतरा वांना सर्व आगल धरी रा०, बोल्यों , जोडी हाथ हो।
आप करों अंगीकार तेहनें रा०, करो मोंने आप सुनाथ हो।।